रस के भेद (Ras ke bhed) – शृंगार रस (Shringar Ras), हास्य रस (Hasya Ras), करुण रस (Karun Ras), वीर रस (Veer Ras), रौद्र रस (Rodra Ras), भयानक रस (Bhayanak Ras), वीभत्स रस (Vibhats Ras), अद्भुत रस (Adbhut Ras), शांत रस (Shant Ras), वात्सल्य रस (Vatsalya Ras),भक्ति रस ( Bhakti Ras )
रस के भेद (Ras ke bhed)
- शृंगार रस (Shringar Ras)
- हास्य रस (Hasya Ras)
- करुण रस (Karun Ras)
- वीर रस (Veer Ras)
- रौद्र रस (Rodra Ras)
- भयानक रस (Bhayanak Ras)
- वीभत्स रस (Vibhats Ras)
- अद्भुत रस (Adbhut Ras)
- शांत रस (Shant Ras)
- वात्सल्य रस (Vatsalya Ras)
- भक्ति रस (Bhakti Ras)
शृंगार रस (Shringar Ras)
स्त्री-पुरुष के पारस्परिक प्रेम के वर्णन से मन में उत्पन्न होने वाले आनंद को शृंगार रस कहते हैं।
→ आचार्य भोज ने शृंगार रस को रस राज यानी रसों का राजा भी कहा है।
→ शृंगार रस का स्थायी भाव ‘रति’ है।
शृंगार रस के भेद (Shringar Ras ke bhed)
(1) संयोग रस
(2) वियोग रस
संयोग रस
→ जब नायक नायिका के परस्पर मिलन, स्पर्श, आलिगंन, वार्तालाप आदि का वर्णन होता है, तब संयोग शृंगार रस होता है।
उदाहरण →
बतरस लालच लाल की, मुरली धरी लुकाय।
सौंह करै भौंहनि हँसै, दैन कहै नहि जाय।
स्थायी भाव = रति
आलंबन = कृष्ण
आश्रय = गोपियाँ
उद्दीपन = बतरस लालच
अनुभाव = बाॅसुरी छिपाना, भौंहों से हँसना, मना करना,
संचारी भाव = हर्ष, उत्सुकता, चपलता आदि
वियोग रस
→ जहाँ पर नायक-नायिका का परस्पर प्रबल प्रेम हो लेकिन मिलन न हो अर्थात् नायक – नायिका के वियोग का वर्णन हो वहाँ वियोग रस होता है।
→ वियोग का स्थायी भाव भी ‘रति’ होता है।
हास्य रस (Hasya Ras)
वाणी, वेशभूषा, विकृत आकार इत्यादि के कारण मन में हास्य का भाव उत्पन्न होता है, उसे हास्य रस कहते हैं।
→ इसका स्थायी भाव ‘हास’ होता है।
करुण रस (Karun Ras)
करुण रस की उत्पत्ति बंधु विनास, किसी प्रिय व्यक्ति की मृत्यु आदि अनिष्ट के कारण होती है।
→ इसका स्थायी भाव शोक है।
वीर रस (Veer Ras)
शत्रु के उत्कर्ष को मिटाने, दीनो की दुर्दशा देख उनका उद्धार करने, धर्म का उद्धार करने आदि में जो उत्साह कर्म-क्षेत्र में प्रवृत्त करता है, वह वीर रस कहलाता है।
→ वीर रस का स्थायी भाव ‘उत्साह’ है।
रौद्र रस (Rodra Ras)
क्रोध नामक स्थायी भाव जब अनुचित कार्यों, शत्रु अथवा विरोधी की अनुचित चेष्टाओं के कारण उत्पन्न होता है, तब वहाँ रौद्र रस होता है इसका स्थायी भाव ‘क्रोध’ है।
उस काल मारे क्रोध के तनु काँपने उनका लगा।
मानो हवा के वेग से सोता हुआ सागर जगा
धनु विदित सकल संसार।।
भयानक रस (Bhayanak Ras)
जब भय जैसी स्थायी भाव, विभाव अनुभाव से संयोग करते हैं, तो भयानक रस होता है। जैसे – शेर, चीता, अजगर, बलिष्ठ, निर्जन या भयानक दृष्टि से इत्यादि से भय का संचार होता है। इसका स्थायी भाव ‘भय’ है।
हाहाकार हुआ क्रन्दन मय, कठिन वज्र होते थे चूर, हुये दिगन्त बधीर, भीषण रव होता था, बार-बार, क्रूर
वीभत्स रस (Vibhats Ras)
जहाँ घिनौने पदार्थ को देखकर ग्लानि उत्पन्न हो, वहाँ वीभत्स रस होता है;
जैसे – युद्ध के पश्चात चारों ओर शव बिखरे हों, अंग आदि कटकर गिरे हों, गिद्ध और कौए शव को नोच रहे हों। इसका स्थायी भाव ‘जुगुप्सा’ है।
उदाहरण – आँखें निकाल उड़ जाते क्षण भर उड़कर आ जाते शव जीभ खींचकर कौवे चुभला-चुभलाकर खाते भोजन के श्वान लगे मुर्दे पर मुर्दे लेटे। खा मास चाट लेते थे, चटनी सम बहते बेते।
अद्भुत रस (Adbhut Ras)
जहाँ पर चकित कर देने के दृश्य या प्रसंग के चित्रण से रस उत्पन्न होता है, वहाँ अद्भुत रस होता है। इसका स्थायी भाव ‘आश्चर्य’ है।
- देखी यशोदा शिशु के मुख में सकल विश्व की माया।
क्षण भर को वह बनी अचेतन हित न सकी कोमल काया।।
शांत रस (Shant Ras)
जहाँ संसार के प्रति उदासीनता के भाव का वर्णन किया गया हो, वहाँ शांत रस होता है। इसका स्थायी भाव ‘निर्वेद’ है।
- मन पछतहिह अवसर बीते।
दुर्लभ देहि पाई हरि पद।
भजु करम असहिते।।
‘‘चलती चाकी देखकर दिया कबीरा रोय,
दुयै पाटन के बीच में साबुत बचा न कोय।’’
वात्सल्य रस (Vatsalya Ras)
अपने से छोटे के प्रति स्नेह भाव का चित्रण होने पर वात्सल्य रस होता है। इसका स्थायी भाव ‘स्नेह’ है।
- उठो लाल अब आँखें खोलो
पानी लाई हूँ मुँह धो लो।
जशोदा हरि पालने झुलाले, हलरावे, दुलरावे,
मलहावे, जोही, सोही कछु गावे।।
भक्ति रस ( Bhakti Ras )
जहाँ ईश्वर के प्रति प्रेम भाव का वर्णन किया गया हो, वहाँ भक्ति रस है। इसका स्थायी भाव ‘देव-विषयक रति’ है।
उदाहरण-
पायो जी म्हें तो राम-रतन धन पायो।
वस्तु अमोलक दी मेरे सतगुरु, करि किरपा अपणायो।
जनम-जनम की पूँजी पाई, जग में सबै खोवायो।
खरचै न खुटै कोई चोर न लूटै, दिन-दिन बढ़त सवायो।
सत की नाव खेवटिया सतगुरु, भवसागर तरि आयो।
‘मीरा’ के प्रभु गिरधर नागर, हरख-हरख जस पायो।।
FAQs on Ras ke bhed
शृंगार रस किसे कहते हैं?
स्त्री-पुरुष के पारस्परिक प्रेम के वर्णन से मन में उत्पन्न होने वाले आनंद को शृंगार रस कहते हैं।
→ आचार्य भोज ने शृंगार रस को रस राज यानी रसों का राजा भी कहा है।
→ शृंगार रस का स्थायी भाव ‘रति’ है।
हास्य रस किसे कहते हैं?
वाणी, वेशभूषा, विकृत आकार इत्यादि के कारण मन में हास्य का भाव उत्पन्न होता है, उसे हास्य रस कहते हैं।
→ इसका स्थायी भाव ‘हास’ होता है।
करुण रस किसे कहते हैं?
करुण रस की उत्पत्ति बंधु विनास, किसी प्रिय व्यक्ति की मृत्यु आदि अनिष्ट के कारण होती है।
→ इसका स्थायी भाव शोक है।
शांत रस किसे कहते हैं?
जहाँ संसार के प्रति उदासीनता के भाव का वर्णन किया गया हो, वहाँ शांत रस होता है। इसका स्थायी भाव ‘निर्वेद’ है।
मन पछतहिह अवसर बीते।
दुर्लभ देहि पाई हरि पद।
भजु करम असहिते।।
भक्ति रस किसे कहते हैं?
जहाँ ईश्वर के प्रति प्रेम भाव का वर्णन किया गया हो, वहाँ भक्ति रस है। इसका स्थायी भाव ‘देव-विषयक रति’ है।
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